Matar ki Kheti : मटर की खेती करके ले सकते है बंपर उत्पादन

Matar ki Kheti : मटर का उत्पादन सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार राज्यों में होता है. इसके साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों में भी इसका उत्पादन होता है, मगर किसान भाइयों को मटर की खेती से लाखों रुपये कमाने के लिए इसकी अगेती खेती करनी चाहिए। सितंबर के आखिरी सप्ताह से 15 अक्तूबर तक मटर की अगेती बुवाई की जाती है। यदि आप अगेती मटर की खेती से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। तो सितंबर के पहले सप्ताह से ही खेत की तैयारी करनी चाहिए। बुवाई लाइनो में हल के पीछे 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है।

Matar ki Kheti

Matar ki Kheti दोमट या हल्की दोमट जमीन मटर के लिए बेहतर है। इस जमीन में उपज भी अच्छी होती है. लेकिन चिकनी तथा बलुई मिट्टी जिसका PH मान 6 से 7.5 हो मटर के अच्छे उत्पादन के लिए बहुत ही उत्तम होती है.

जमीन की तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, फिर दो या तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए।

प्रस्तुत प्रजातियाँ

रचना, इन्द्र (KPMR-400), शिखा (KFPD-103), मालवीय मटर-15, मालवीय मटर-2। जे.पी.-885, पूसा प्रभात (डी.डी.आर.-23), पन्त मटर-5, आदर्श (आई.पी.एफ.-99-15), विकास (आई.पी.एफ.डी.-99-13), जय (के.पी.एम.आर.-522), सपना (के.पी.एम.आर.-144-1), प्रकाश, हरियाल, पालथी मटर, पन्त पी.-42, अमन (आई.पी.एफ.डी. -10-12)।Matar ki Kheti

बीज की संख्या

80 से 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर लंबे पौधे की प्रजातियों और सभी बीनी प्रजातियों के लिए 125 किग्रा प्रति हेक्टेयर।

बुवाई करना

बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक हल के पीछे 20 सेमी या 30 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। Pantnagar में मटर जीरोटिल ड्रिल से बोया जाता है।Matar ki Kheti

बीज का शोध

बीज जनित रोग से बचने के लिए 2 ग्राम थीरम, 3 ग्राम मैकोंजेब, 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा या 2 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा। बीज बोने से पहले शोध करना चाहिए। बीजशोधन कल्चर द्वारा उपचारित करने से पहले किया जाना चाहिए। 10 किग्रा बीज को एक पैकेट (200 ग्राम) राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके बोने चाहिए। PSB कला अवश्य प्रयोग करें।Matar ki Kheti

खाद

प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश, 20 किग्रा. गंधक, 1 किग्रा. मोलीबिडनम और 60 किग्रा. गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के समय बौनी प्रजातियों को 20 किग्रा अतिरिक्त नत्रजन देना चाहिए।Matar ki Kheti

पानी

यदि जाड़े में वर्षा नहीं होती तो फूल आने पर सिंचाई करनी चाहिए। दाना भरते समय दूसरी सिंचाई फायदेमंद है। बुन्देलखण्ड को स्प्रिंकलर (बौछारी) सिंचाई मिलेगी।

सरकार निर्माण

खरपतवारनाशी रसायन द्वारा खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए, पलूक्लोरैलीन को प्रति हेक्टेयर 45 प्रतिशत ईसी की 2.2  लिटर पानी में घोलकर बुआई के तुरन्त पहले मिट्टी में मिलाना चाहिए. इसके अलावा, 30 प्रतिशत ईसी की 3.3 लिटर या 50 प्रतिशत ईसी की 4.0 लिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर घोलकर फ्लैटफैन नाजिल से छिड़काव करना चाहिए।Matar ki Kheti

कृषि सुरक्षा

बुकनी रोग का पता लगाना:

सफेद चूर्ण पत्तियों, फलियों और तने पर फैलता है, फिर पत्तियाँ आदि ब्राउन या काली होकर मर जाती हैं।

इलाज

1. अवरोधी किस्मों का उपयोग करें।

2। इससे बचने के लिए घुलनशील गंधक 2 किग्रा या ट्राइडोमार्फ 80 EC 500 मिली चाहिए। दवाओं को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए। 10-12 दिन के अंतराल पर ये छिड़काव कम से कम दो बार करना चाहिए।

उकठा रोग का पता लगाना

इस रोग की शुरुआत में पौधों का पूरा पौधा सूख जाता है और उनकी पत्तियाँ नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं।

इलाज: जिस खेत में मटर में एक बार बीमारी हुई हो, उसे तीन से चार वर्षों तक नहीं बोना चाहिए। 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा बीज में मिलाकर बोयें।

झुलसा रोग (अल्टेरनेरिया ब्लाइट) का पता लगाना

यह सभी वायुवीय क्षेत्रों में फैलता है। पहले, नीचे की पत्तियों पर किनारे से भूरे धब्बे आते हैं।

इलाज: इस रोग की रोकथाम के लिए प्रति किग्रा 2.5 ग्राम थीरम नामक दवा से बीजोपचार करना चाहिए। अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा और तुलासिता रोग को नियंत्रित करने के लिए, 75 डब्ल्यूपी की 2 किग्रा मैकोजेब, 75 डब्ल्यूपी की 2 किग्रा जिनेब या 50 डब्ल्यूपी की 3 किग्रा कापर आक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टेयर घोलकर छिड़काव करना चाहिए. लगभग 500 से 600 लीटर पानी में।Matar ki Kheti

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फली खाने वाले कीट

यह गहरे भूरे रंग का पतंगा है, जिसके ऊपरी पंख पर सफेद पीली धारियाँ हैं और पिछले पंख के किनारों पर एक गहरी पारदर्शी लाइन है। सूंडी हरा होता है। फलियों में बन रहे दानों को कीट की गिडारें खाकर नुकसान पहुँचाती हैं। प्रकोपित फलियां रंगहीन, पानी से भरी हुई और दुर्गन्धित होती हैं।

इलाज

फली बेधक से 5 प्रतिशत प्रकोपित फलियां दिखाई देते ही 1 किग्रा बैसीलस थूरिजेंसिस या 1 लीटर फेनवेलरेट 20 EC या 1 लीटर मोनोक्रोटोफास 36 SL पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।Matar ki Kheti

कटाई और संग्रह

फसल पूरी तरह से पकने पर कटाई करें। इसे एक साफ-सुथरे खलियान में मड़ाई करें, फिर दाना निकालें। 3 गोली प्रति मे.टन अल्यूमिनियम फारफाइड का प्रयोग करके भण्डारण कीटों से बचाव करें।Matar ki Kheti

प्रभावी तथ्य

  • प्रमाणित बीज का प्रयोग करके प्रजाति को क्षेत्रीय अनुकूलतानुसार चुनें।
  • ठीक समय पर बुआई करें।
  • गंधक और फास्फोरस के लिए सिंगिल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें।
  • रतुआ को नियंत्रित करने के लिए 0.1 प्रतिशत जिंक सल्फेट डालें।
  • शीघ्र पकने वाली मटर की प्रजातियों की अधिक उपज के लिए प्रति हेक्टेयर 6.6 लाख पौधों (15 x 10 सेमी) की व्यवस्था करें।
  • गर्मी में मटर की बुआई वाले खेत्त की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने से भूमि को खरपतवारों और रोगों से बचाया जा सकता है।
  • जिन खेतों में उकठा बीज गलन अधिक हो, उनमें 3-4 वर्ष तक मटर की फसल नहीं लेनी चाहिए।
  • रोग प्रतिरोधी या रोग सहिष्णु प्रजातियों के प्रमाणित बीज को समय पर बुआई करें। जैसे पन्त मटर-5, मालवीय मटर-2 और चूर्णीय आसिता रोग प्रतिरोधी प्रजाति की बुआई करनी चाहिए।
  • जीवांश खादों का प्रयोग करना आवश्यक है।
  • राइजोबियम से बीज शोधन के बाद ही शुद्ध और प्रमाणित बीज की बोआई करनी चाहिए।
  • प्रजातियों को स्थान, समय और सुविधानुसार चुनना चाहिए।
  • तीन वर्ष बाद बीज बदलना आवश्यक है।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर खाद और उर्वरक की आवश्यक मात्रा निर्धारित समय और विधि से दी जानी चाहिए।
  • बीमारी और कीड़े से बचने के लिए आईपीएम प्रयोग करना चाहिए और नियमित निगरानी करनी चाहिए।

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