Kheera ki Kheti : खीरा का वैज्ञानिक नाम कुकुमिस सेटाइवस (Cucumis sativus) भारत से आता है। सौंदर्य प्रसाधनों में खीरा का उपयोग किया जाता है छोटे फलों को अचार में डालते हैं, जबकि बड़े फलों को सब्जी और सलाद में डालते हैं। खीरा कब्ज को दूर करने के साथ-साथ पेट की हर समस्या को दूर करता है। नियमित रूप से खीरा खाना भी सीने की जलन और एसिडिटी को कम करता है।
खीरे का नियमित भोजन पेट की बीमारियाँ दूर करता है। जिन लोगों को परेशानी होती है, दही में खीरे को कसकर पुदीना, काला नमक, काली मिर्च जीरा और हींग मिलाकर रायता बनाकर खाएँ। इससे आपको बहुत राहत मिलेगी। इसका बीजो तेल मस्तिष्क और शरीर दोनों के लिए बहुत अच्छा है। इसके फलों में विटामिन बी और सी हैं; 2.7 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट; 0.4 प्रतिशत प्रोटीन; 0.1 प्रतिशत यसा; और 0.4 प्रतिशत खनिज पदार्थ हैं।Kheera ki Kheti
Kheera ki Kheti : खीरा के फलो की तासीर ठंडी होती है इसलिए गर्मियों पर इसके फलों को नमक तथा मिर्च के साथ खाया जाता है। अतः गर्मियों पर खीरा की भरपुर मांग रहती है व किसानो को इसके उत्पादन करने पर अच्छी आमदनी होती है।Kheera ki Kheti
उन्नत किस्मे
1) जापानी लौंग ग्रीन
2) बालम खीरा
3) पूना खीरा
4) स्ट्रेट एट
5) पाइनसेट
6) पूसा उदय
संकर किस्में
1) पूसा संयोग
2) प्रिया
3) मालिनी
4) निजा
जलवायु: खीरा गर्न जलवायु के अनुकूल होता है। बीज अंकुरण के लिए 30-35 डिग्री तापमान चाहिए, जबकि पौधों की वृद्धि के लिए 32-38 डिग्री तापमान चाहिए। खीरा की फसल पर बदली छाये रहने या अधिक वर्षा होने से रोगों और कीटो का अधिक प्रकोप होता है।Kheera ki Kheti
मृदा और जमीन की तैयारी: खीरा की खेती के लिए कई प्रकार की मृदाएं हैं, जैसे भारी हल्की भूमि में यह संभव है। खीरा की अच्छी पैदावार के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट और बलुई दोमट भूमि सबसे अच्छी है। यह खेती के लिए उचित भूमि है जिसमें पीएच 5.5-6.5 होता है और पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ होते हैं। खेत दो या तीन जुताई से तैयार होता है। जुताई के बाद खेत में पाटा लगाकर क्यारियों बनाना चाहिए। भारी जमीन की तैयारी के लिए अधिक मेहनत की जरूरत है।
बुआई समय: खेत में खीरा दो बार बोया जा सकता है। ग्रीष्म फसल फरवरी मार्च में और वर्षा फसल जून जुलाई में बोई जाती है। वर्षा फसल के लिए बांस या लकड़ी के सहारे चाहिए।Kheera ki Kheti
बीज दर: बीज को प्रति हेक्टेयर 3-4 किलोग्राम देना चाहिए।
बुवाई की विधि: एक गहरा, लम्बा, चौड़ा, 0.75 मी. x 0.75 मी. गड्ढा बनाकर उसमें 1/3 मात्रा में फास्फोरस, पोटाश, गोबर की खाद और नत्रजन मिलाकर भर देना चाहिए. प्रत्येक गड्ढे में 3-4 बीज लगाकर अंकुरण करने के बाद दो पौधे छोड़कर बाकी को उखाड़ देना चाहिए। दूसरी प्रक्रिया में, उचित दूरी पर एक नाली बनाकर बीजों को उसके दोनों किनारों पर लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में नालियों के बीच की दूरी दोगुना होनी चाहिए।Kheera ki Kheti
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 1.0-1.5 मी॰ पंक्ति से पंक्ति/नाली से नाली व 50-60 मी॰ पौधे से पौधे; वर्षाकालीन फसल के लिए 15 मी॰ पंक्ति से पंक्ति व 1.5 मी॰। पौधे को एक दूरी पर रखना चाहिए।
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खाद और उर्वरक: प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम गोबर खाद या कम्पोस्ट (250 टन)। 40 किलोग्राम/हेक्टेयर नत्रजन 40 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर पोटाश/हेक्टेयर की जरूरत है।Kheera ki Kheti
खाद और उर्वरक देने का समय: गोबर की खाद, फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में तैयार होने के बाद दी जानी चाहिए; नत्रजन को तीन भागों में बाँट देना चाहिए: 1/3 भाग 4-5 पत्तियां आने पर, 1/3 भाग फूल आने पर और 1/3 भाग फूल आने पर।
सिंचाई तथा जल निकास: वर्षाकालीन मौसम का खीरा फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शुष्क मौसम में चार से पांच दिन के अंतराल में सिंचाई की जरूरत होती है। खीरे में जलनिकाय होना चाहिए खेत में पानी मिलने पर पौधे पीले पड़ जाते हैं और उनकी वृद्वि रुक जाती है।Kheera ki Kheti
खरपतवार नियंत्रण/निदाई-गुड़ाई: किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। खीरा की अच्दी उत्पादन के लिए खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। वर्षाकालीन फसल में चार बार और बसंतकालीन फसल में दो बार निदाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
पादप वृद्धि नियामक: खीरा में पहले अधिक नर फूल होते हैं। गाय का फूल बाद में आते हैं और उनकी संख्या भी कम होती है, जिससे पैदावार कम होती है. इसलिए, 2-4 पत्तियों की अवस्था में 250 पीपीएम एथेल घोल छिड़काव से मादा फूलों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।Kheera ki Kheti
फसलों की सुरक्षा: 01. चूर्णिल आसिता: इस बीमारी से पत्तियों पर सफेद पाउडर सा बिखरा दिखाई देता है, यह तेजी से फैलता है और दूसरी पत्तियों में दानों की सतह को चूर्ण जैसे आवरण से ढक लेता है। रोग को नियंत्रित करने के लिए कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) और सल्फेक्स (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) की दर से छिड़काव करना चाहिये, आवश्यकतानुसार दो से तीन छिड़काव को 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिये।
02. उकठा (Manni): इस बीमारी का संक्रमण पौधे की कुछ स्थितियों में हो सकता है। पुरानी पत्तियों का मुरझाकर नीचे की ओर लटकना इस रोग का मुख्य लक्षण है। खेत में पर्याप्त नमी होने पर भी पत्तियों के किनारे झुलस जाते हैं और पौधा धीरे-धीरे मर जाता है। रोग को रोकथाम करने के लिए बीजोपचार में बाविस्टीन को 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये, साथ ही फसल चक्र और रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिये।Kheera ki Kheti
03. मोजेक: यह रोग विषाणुजनित है, जिससे पत्तियों की शिरायें पीली पड़ जाती हैं और अंततः शिरायें मर जाती हैं। पौधे की अंतः कलिका कम हो जाती है। फस छोटे, सफेद होते हैं और आकार में विकृत होते हैं। माहू कीट रोग फैलाता है। रोग भी बीज से फैलता है। इस रोग को रोकथाम करने के लिए, विषाणुओं को शरण देने वाले खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए और स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिए। वाहक कीटों को नियंत्रित करने के लिए, 25 ईसी मिथाइल ऑक्सीडेमेडान या 30 ईसी डायमिथोएट 750 मिलीलीटर प्रति हेकटेयर या 0.5 मिलीलीटर इमिडाक्लोरप्रिड 200 एसएल पानी में मिलाकर 10 से 15 किन के अंतराल पर घोल देना चाहिए।
प्रमुख कीटः 01. कद्दू का लाल भृंग, या रेड पम्पकिन बीटल: वयस्क कीट लाल होता है पौढ़ कीट पत्तियों, फूलों और फलों को काटकर खाते हैं। जब कीट प्रकोप शुरू होता है, तो पत्तियां पूरी तरह से खाली हो जाती हैं और केवल डंठल बचते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और सूख जाते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए खेत को निंदाई-गुड़ाई कर साफ रखना चाहिए। फसल कटाई के बाद खेतों को गहरा करना चाहिए ताकि जमीन में छिपे हुए कीट और अण्डे सूर्य की गर्मी या चिड़ियों द्वारा मार डाले जा सकें। कार्बोफ्यूरान को पौधों के आधार के पास 3 से 4 सेमी दानेदार मिट्टी के अनदर में 7 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें. दानेदार कीटनाशक डालने के बाद पानी डालें। डायक्लोखास 76 EC 300 ML प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए जब कीटों की संख्या अधिक होती है।Kheera ki Kheti
02. फलों की मक्खी यह कीट घरेलू मक्खी के बराबर लाल भूरे या पीले रंग का होता है। मादा कीट कोमल फलों में छेद करके अंडे छिलके के भीतर डालती है। इल्लियां अंडों से निकलकर फलों के गूदे को खाती हैं, इससे फल सड़ने लगते हैं। क्षतिग्रस्त फल कमजोर होकर नीचे गिरते हैं। इस कीट को मारने के लिए सबसे पहले क्षतिग्रस्त फलों को नष्ट करना चाहिए। सनई या मक्का को खेत में प्रपंची फसल के रूप में लगाना चाहिए। 50 प्रतिशत एक किलो प्रति हेक्टेयर या 2 प्रतिशत थायोड़ान कार्बोरिल घुलनशीन पाउडर छिड़काव करें।
फलों की तुड़ाई: खीरा के फलों को अच्छी तरह से तोड़ना चाहिए ताकि वे बाजार में अच्छी कीमत मिल सकें। फल हरे और पूरी तरह से विकसित होने पर उन्हें तोड़ देना चाहिए, फिर 2-3 दिनों के अंतराल पर बाद की तुडाई की जा सकती है। ताकि बेल को कोई नुकसान न हो, फलो को तेजधार वाले औचार से तोड़ना चाहिए।Kheera ki Kheti
उपज: खीरा की औसत उपज 75-150 क्विटल है।
किसान भाइयों खीरा की खेती के बारे में जानकारी कैसी लगी। कृप्या करके कॉमेंट में जरूर बताएं। प्रिय पाठकों! हम समाचार प्रकाशित करते हैं जो कृषि विशेषज्ञों, कृषि वैज्ञानिकों और सरकारी कृषि योजनाओं के विशेषज्ञों द्वारा गहन अध्ययन किया गया है. हमारा सहयोग करते रहिए और हम आपको नवीनतम जानकारी देते रहेंगे। नीचे दी गई लिंक के माध्यम से हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़कर नवीनतम समाचार और जानकारी प्राप्त करें।
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